कार्ल मार्क्स (Karl Marx)

यहां UGC NET Political Science परीक्षा के लिए कार्ल मार्क्स (Karl Marx) से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं

"दुनिया के मजदूरों, एक हो जाओ!"Karl Marx

दुनिया के मज़दूरो एक हो जाओ!कार्ल मार्क्स  और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा कम्युनिस्ट घोषणापत्र (1848) के नारों में से एक है। जल्द ही अंग्रेजी में इसे "Workers of the world, unite! You have nothing to lose but your chains!" के रूप में लोकप्रिय किया गया और हिन्दी में "मज़दूरों को अपनी (ग़ुलामी की) ज़ंजीरों के सिवा खोना ही क्या है? और जीतने को सारी दुनिया पड़ी है। (सारी) दुनिया के मज़दूरो, एक हो जाओ!" के रूप में लोकप्रिय किया गया

नमस्कार दोस्तों, आज हम बात करेंगे कार्ल मार्क्स और उनके राजनीतिक विचारों की। कार्ल मार्क्स ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism), द्वन्द्वात्मकता भौतिकवाद (Dialectical Materialism), वर्ग संघर्ष (Class Struggle), सर्वहारा क्रांति (Proletarian Revolution), और साम्यवाद (Communism) जैसी अवधारणाओं के लिए जाने जाते हैं।

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कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय

  • कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मार्च 1818 को जर्मनी के राइनलैंड क्षेत्र के ट्रायर शहर में हुआ था। उनका परिवार यहूदी था, लेकिन उनके पिता हाइनरिख मार्क्स ने 1817 में लूथरन ईसाई धर्म अपना लिया था। मार्क्स ने 1835 में बॉन विश्वविद्यालय से विधि की पढ़ाई शुरू की, लेकिन बाद में उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र को अपना मुख्य विषय बना लिया। वे युवा हेगेलवादियों से प्रभावित थे, और 1841 में अपना डॉक्टरेट पूरा किया।
  • 1843 में, मार्क्स ने अपनी बचपन की मित्र जेनी वॉन वेस्टफालेन से विवाह किया। उन्होंने कई कट्टरपंथी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें राइनिशे साइटुंग प्रमुख थी। 1844 में पेरिस में रहते हुए, वे श्रमिक आंदोलन और राजनीतिक अर्थशास्त्र में रुचि लेने लगे। यहीं पर उनकी फ्रेडरिक एंगेल्स से मित्रता हुई और दोनों ने मिलकर "जर्मन विचारधारा" (1847) लिखी।
  • 1848 में, मार्क्स और एंगेल्स ने "कम्युनिस्ट घोषणापत्र" प्रकाशित किया, जिसमें वर्ग संघर्ष और सर्वहारा क्रांति की अवधारणा प्रस्तुत की गई। उसी वर्ष उन्हें प्रशा (Prussia) से निष्कासित कर दिया गया, जिसके बाद वे लंदन चले गए। वहाँ उन्होंने ब्रिटिश म्यूजियम में अध्ययन किया और पूँजीवाद पर गहन शोध किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी प्रसिद्ध कृति "दास कैपिटल" (1867) प्रकाशित हुई। 
  • मार्क्स का जीवन आर्थिक कठिनाइयों में बीता। उन्होंने न्यूयॉर्क ट्रिब्यून के लिए लेख लिखकर कुछ आय अर्जित की, लेकिन अधिकांश समय वे एंगेल्स की आर्थिक सहायता पर निर्भर रहे। उनके छह बच्चों में से तीन की मृत्यु गरीबी के कारण हुई। उनकी पत्नी जेनी 1881 में चल बसीं, और अंततः 14 मार्च 1883 को कार्ल मार्क्स का लंदन में निधन हो गया। उन्हें हाईगेट कब्रिस्तान में दफनाया गया​।

कार्ल मार्क्स की प्रमुख रचनाएँ:

  • The Communist Manifesto (1848) – फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ सह-लेखक।
  • Das Kapital (1867-1894) – पूंजीवाद की आलोचना।
  • Critique of Political Economy (1859) – ऐतिहासिक भौतिकवाद की अवधारणा।
  • The German Ideology (1846) – विचारधारा और इतिहास की व्याख्या।
  • The Eighteenth Brumaire of Louis Bonaparte (1852) – क्रांति और राजनीति पर विचार।


द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद

  • कार्ल मार्क्स ने हेगेल की द्वंद्वात्मक पद्धति को अपनाया, लेकिन उन्होंने इसे भौतिकवादी दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया। हेगेल के अनुसार, इतिहास विचारों के टकराव और उनके विकास की प्रक्रिया थी, जबकि मार्क्स ने इसे आर्थिक उत्पादन और सामाजिक संबंधों की प्रक्रिया के रूप में देखा।
  • द्वंद्वात्मक भौतिकवाद: मार्क्स ने तर्क दिया कि भौतिक वास्तविकता विचारों से अधिक महत्वपूर्ण है और चेतना का निर्धारण जीवन की भौतिक परिस्थितियों से होता है। उन्होंने हेगेल की आदर्शवादी पद्धति को खारिज करते हुए इसे भौतिक संसार के लिए लागू किया। मार्क्स के अनुसार, सामाजिक परिवर्तन द्वंद्वात्मक संघर्षों का परिणाम होता है, जिसमें प्रत्येक युग की आर्थिक संरचना नई सामाजिक परिस्थितियों को जन्म देती है​।
  • ऐतिहासिक भौतिकवाद : मार्क्स ने यह प्रतिपादित किया कि इतिहास सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं के विकास का एक क्रमिक परिणाम है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पीढ़ी अपने पूर्ववर्ती आर्थिक ढांचे और सामाजिक संबंधों को विरासत में प्राप्त करती है और उन्हें परिवर्तित करती है। उनके अनुसार, उत्पादन और विनिमय की विधियाँ समाज में होने वाले सभी परिवर्तनों का मूल कारण होती हैं।
  • मार्क्स ने तर्क दिया कि सामाजिक परिवर्तन का मूल स्रोत उत्पादन संबंधों और उत्पादन शक्तियों के बीच संघर्ष है। जब वर्तमान उत्पादन संबंध उत्पादन शक्तियों के विकास में बाधा उत्पन्न करने लगते हैं, तो क्रांति की स्थिति उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया में समाज धीरे-धीरे एक नए सामाजिक-आर्थिक ढांचे में बदल जाता है​।

मार्क्स ने इतिहास को पाँच चरणों में विभाजित किया: 

  1. आदिम साम्यवाद (Primitive Communism)
  2. दास प्रथा (Slavery)
  3. सामंतवाद (Feudalism)
  4. पूंजीवाद (Capitalism)
  5. साम्यवाद (Communism)

  • उनके अनुसार, प्रत्येक चरण अपने भीतर अंतर्विरोध उत्पन्न करता है, जो अगले चरण की ओर ले जाता है। पूंजीवाद अंततः अपने अंतर्विरोधों के कारण समाप्त होगा और सर्वहारा क्रांति के माध्यम से साम्यवादी समाज की स्थापना होगी​ 

वर्ग संघर्ष और पूंजीवाद की आलोचना

  • कार्ल मार्क्स के अनुसार, इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। समाज में हमेशा दो मुख्य वर्ग रहे हैं—एक जो उत्पादन के साधनों का स्वामी है और दूसरा जो अपनी श्रम शक्ति को बेचने के लिए मजबूर है। ऐतिहासिक रूप से, ये वर्ग विभिन्न नामों से जाने जाते रहे हैं, जैसे स्वामी और दास, सामंत और कृषक, पूंजीपति और श्रमिक। इन वर्गों के बीच संघर्ष शोषण और वर्चस्व पर आधारित रहा है​।
  • मार्क्स ने वर्ग संघर्ष को सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारक माना। उनके अनुसार, पूंजीवादी समाज में पूंजीपति वर्ग (बुर्जुआ) उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रखता है, जबकि श्रमिक वर्ग (सर्वहारा) अपनी जीविका के लिए उन पर निर्भर होता है। यह असमानता शोषण को जन्म देती है और एक क्रांतिकारी संघर्ष की संभावना को बढ़ाती है​
  • मार्क्स ने पूंजीवाद को अस्थायी प्रणाली माना, जो अंततः अपने ही अंतर्विरोधों के कारण नष्ट हो जाएगी। उनकी प्रमुख आलोचनाएँ इस प्रकार थीं:
  • श्रमिकों का शोषण – पूंजीपति उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रखते हैं और श्रमिकों की मेहनत से अधिशेष मूल्य (surplus value) अर्जित करते हैं, जो शोषण का मूल आधार है​।
  • वर्गीय चेतना और वैचारिक नियंत्रण – पूंजीवादी विचारधारा यह दिखाने का प्रयास करती है कि समाज में व्याप्त असमानता स्वाभाविक है, जिससे उत्पीड़ित वर्ग अपनी स्थिति को चुनौती नहीं देता। इसे मार्क्स ने "झूठी चेतना" (False Consciousness) कहा​।
  • आर्थिक संकट और पूंजीवाद का पतन – पूंजीवाद में प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे उत्पादक धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं, और आर्थिक अस्थिरता पैदा होती है। समाज दो ध्रुवों में बंट जाता है—एक ओर अत्यधिक धनवान पूंजीपति और दूसरी ओर शोषित श्रमिक। यही अंततः क्रांति की स्थिति उत्पन्न करता है​।

साम्यवाद और राज्य का विलुप्त होना

  • कार्ल मार्क्स के अनुसार, साम्यवादी समाज का अंतिम लक्ष्य एक वर्गहीन और राज्यविहीन समाज की स्थापना था। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य ऐतिहासिक रूप से वर्ग संघर्ष का उपकरण रहा है, जो समाज के प्रभुत्वशाली वर्गों के हितों की रक्षा करता है।
  • मार्क्स ने साम्यवाद को दो चरणों में विभाजित किया:
  • प्रथम चरण (समाजवाद) – उत्पादन के साधनों का समाजीकरण होगा, और राज्य सर्वहारा की तानाशाही (Dictatorship of the Proletariat) के रूप में कार्य करेगा, जिसका उद्देश्य पूंजीवादी प्रभाव को समाप्त करना होगा।

  • द्वितीय चरण (पूर्ण साम्यवाद) – उत्पादन की इतनी अधिकता होगी कि "हर व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार लिया जाएगा और उसे उसकी आवश्यकताओं के अनुसार दिया जाएगा"। इस अवस्था में निजी संपत्ति समाप्त हो जाएगी, और राज्य की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगी​।
राज्य के विलुप्त होने की प्रक्रिया
  • फ्रेडरिक एंगेल्स ने "Anti-Dühring" (1878) में "Withering Away of the State" की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि "व्यक्तियों पर शासन करने वाली सरकार धीरे-धीरे चीजों के प्रशासन और उत्पादन प्रक्रियाओं के प्रबंधन से बदल जाएगी"। इसका अर्थ यह था कि सरकार की जबरदस्ती की भूमिका समाप्त हो जाएगी, और एक स्व-नियंत्रित समाज विकसित होगा​।
  • मार्क्स ने स्पष्ट किया कि राज्य का उन्मूलन अचानक नहीं होगा, बल्कि यह एक संक्रमणकालीन प्रक्रिया होगी। क्रांति के बाद, सर्वहारा वर्ग राज्य को अपने नियंत्रण में लेगा और इसे शोषक वर्गों के प्रभाव से मुक्त करेगा। एक बार जब वर्ग संघर्ष समाप्त हो जाएगा, तो राज्य की आवश्यकता स्वतः समाप्त हो जाएगी।

मार्क्सवाद की समकालीन प्रासंगिकता

  • मार्क्सवाद की पूंजीवाद पर की गई आलोचना आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। श्रमिकों का शोषण, आर्थिक असमानता और पूंजीवादी संकट जैसी समस्याएँ आज भी मौजूद हैं। थॉमस पिकेटी, जो आधुनिक अर्थशास्त्री हैं, उन्होंने भी आर्थिक असमानता पर अपने शोध में मार्क्स के विचारों की पुनर्व्याख्या की है​।
  • मार्क्स ने भविष्यवाणी की थी कि पूंजीवाद के अंतर्गत श्रमिक वर्ग संगठित होकर क्रांति करेगा। हालाँकि, आज के संदर्भ में, श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियनों और श्रमिक आंदोलनों की भूमिका बनी हुई है, लेकिन नव-उदारवाद और स्वचालन के कारण श्रमिक वर्ग की पारंपरिक परिभाषा बदल गई है​।
  • सोवियत संघ और अन्य साम्यवादी देशों के पतन ने यह साबित किया कि राज्य समाजवाद व्यावहारिक रूप से असफल रहा। हालांकि, कुछ समाजवादी विचार अब भी नीति निर्माण में देखे जाते हैं, जैसे कि स्कैंडिनेवियाई देशों की कल्याणकारी राज्य नीतियाँ​।
  • आधुनिक पर्यावरणीय आंदोलनों में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव देखा जाता है। इको-सोशलिज्म (Eco-Socialism) जैसी विचारधाराएँ पूंजीवाद को पर्यावरण संकट के लिए जिम्मेदार मानती हैं और संसाधनों के सामाजिक स्वामित्व की वकालत करती हैं​।
  • उत्तर-आधुनिक विचारक मार्क्सवाद की कुछ धारणाओं को चुनौती देते हैं, खासकर इसकी "इतिहास के अपरिहार्य विकास" की धारणा को। वे तर्क देते हैं कि इतिहास में कोई निश्चित दिशा नहीं होती, और सामाजिक परिवर्तन जटिल कारकों पर निर्भर करता है​।

मार्क्स की आलोचना

  • एडवर्ड बर्नस्टीन (Eduard Bernstein) ने मार्क्स के क्रांति सिद्धांत को अस्वीकार कर सुधारवाद (Revisionism) का समर्थन किया
  • मार्क्स ने राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान की भूमिका को कम करके आंका
  • साम्यवादी शासन में राज्य का दमनकारी रूप देखने को मिला, जो मार्क्स के विचारों के विपरीत था

निष्कर्ष

  • कार्ल मार्क्स को आधुनिक समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीतिक दर्शन के सबसे प्रभावशाली विचारकों में से एक माना जाता है
  • उनकी विचारधारा ने रूस, चीन, क्यूबा और कई अन्य देशों में क्रांतियों को प्रेरित किया
  • मार्क्स का वर्ग संघर्ष, ऐतिहासिक भौतिकवाद, पूंजीवाद की आलोचना, और साम्यवादी क्रांति का सिद्धांत आज भी राजनीतिक और अकादमिक बहस का विषय है

UGC NET परीक्षा के लिए यह कार्ल मार्क्स के महत्वपूर्ण तथ्यों की विस्तृत सूची है, जो उनके राजनीतिक विचारों के सभी प्रमुख पहलुओं को कवर करती है।

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