वर्ग संघर्ष क्या है?

मार्क्सवादी दृष्टिकोण से वर्ग संघर्ष की परिभाषा 

मार्क्सवादी दृष्टिकोण से वर्ग संघर्ष समाज में मौजूद विभिन्न आर्थिक वर्गों के बीच टकराव को दर्शाता है, जो मुख्यतः उत्पादन के साधनों (Means of Production) के स्वामित्व और श्रम के शोषण पर आधारित होता है।

कार्ल मार्क्स के अनुसार, इतिहास की समस्त घटनाएँ वर्ग संघर्ष से संचालित होती हैं। यह संघर्ष शासक वर्ग (Bourgeoisie) और शोषित वर्ग (Proletariat) के बीच होता है, जहाँ शासक वर्ग उत्पादन के साधनों का स्वामी होता है और श्रमिक वर्ग अपने श्रम को बेचने के लिए बाध्य होता है।

ऐतिहासिक भौतिकवाद में वर्ग संघर्ष की  भूमिका 

ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) में वर्ग संघर्ष केंद्रीय भूमिका निभाता है क्योंकि यह समाज की संरचना, विकास और परिवर्तन का मुख्य प्रेरक तत्व है।

मार्क्स और एंगेल्स के अनुसार, समाज की प्रत्येक ऐतिहासिक अवस्था (जैसे, सामंतवाद, पूंजीवाद) वर्ग संघर्ष के कारण बदलती है। उत्पादन संबंधों में टकराव के कारण वर्ग-संघर्ष सामाजिक क्रांति (Social Revolution) को जन्म देता है, जिससे नई उत्पादन व्यवस्था विकसित होती है।

इस सिद्धांत में वर्ग संघर्ष को इतिहास के विकास का इंजन माना गया है, जो अंततः साम्यवाद की स्थापना की ओर ले जाता है, जहाँ वर्गों का अंत हो जाता है।

विभिन्न आर्थिक व्यवस्थाओं में वर्ग संघर्ष के स्वरूप:

  1. आदिम साम्यवाद (Primitive Communism)

    • कोई वर्ग विभाजन नहीं था।
    • उत्पादन के साधन सामूहिक स्वामित्व में थे।
    • संघर्ष व्यक्तिगत नहीं, बल्कि प्रकृति से जीविका के लिए था।
  2. दास प्रथा (Slave Society)

    • संघर्ष दास स्वामियों (Slave Owners) और दासों (Slaves) के बीच था।
    • दासों को श्रम करने के लिए बाध्य किया जाता था।
    • विद्रोह (जैसे स्पार्टाकस का विद्रोह) वर्ग संघर्ष का उदाहरण है।
  3. सामंतवाद (Feudalism)

    • संघर्ष सामंती जमींदारों (Feudal Lords) और किसानों/कृपालुओं (Serfs/Peasants) के बीच था।
    • किसान भूमि पर श्रम करते थे लेकिन स्वामित्व जमींदारों के पास था।
    • कृषक विद्रोह और सामंती व्यवस्था के पतन के रूप में संघर्ष दिखा।
  4. पूंजीवाद (Capitalism)

    • संघर्ष पूंजीपति (Bourgeoisie) और मजदूर (Proletariat) के बीच होता है।
    • पूंजीपति उत्पादन के साधनों के स्वामी होते हैं, जबकि मजदूर श्रम बेचते हैं।
    • संघर्ष हड़तालों, श्रमिक आंदोलनों और क्रांतिकारी गतिविधियों में प्रकट होता है।
  5. समाजवाद (Socialism)

    • संघर्ष राज्य नौकरशाही और श्रमिक वर्ग के बीच हो सकता है।
    • राज्य उत्पादन के साधनों का नियंत्रण करता है, लेकिन वर्ग अवशेष बने रहते हैं।
    • उद्देश्य वर्गहीन समाज की ओर बढ़ना होता है।
  6. साम्यवाद (Communism)

    • कोई वर्ग संघर्ष नहीं होता क्योंकि समाज वर्गविहीन होता है।
    • उत्पादन के साधन सामूहिक स्वामित्व में होते हैं।
    • राज्य और शोषण समाप्त हो जाता है, जिससे संघर्ष का अंत हो जाता है।

वर्ग चेतना (Class Consciousness) और इसके विकास की प्रक्रिया 

वर्ग चेतना वह स्थिति है जिसमें एक वर्ग अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हितों के प्रति जागरूक होता है और संगठित होकर अपने शोषण के खिलाफ संघर्ष करता है। कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने इसे सर्वहारा वर्ग के क्रांतिकारी बदलाव के लिए अनिवार्य शर्त माना।

वर्ग चेतना के विकास की प्रक्रिया:

  1. वर्ग-में-स्वयं (Class-in-Itself) की अवस्था

    • यह प्रारंभिक अवस्था है, जहाँ एक वर्ग आर्थिक रूप से शोषित होता है लेकिन उसे अपनी स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता।
    • उदाहरण: श्रमिक केवल मजदूरी पाने के लिए कार्य करते हैं और शोषण को प्राकृतिक मानते हैं।
  2. वर्ग-के-लिए-स्वयं (Class-for-Itself) की अवस्था

    • जब श्रमिक अपने शोषण और पूंजीपति वर्ग के शोषण तंत्र को समझने लगते हैं, तो वे संगठित होकर संघर्ष के लिए तैयार होते हैं।
    • ट्रेड यूनियन, हड़तालें और राजनीतिक आंदोलन इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं।
  3. क्रांतिकारी चेतना (Revolutionary Consciousness)

    • जब श्रमिक वर्ग संपूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था को बदलने के लिए क्रांतिकारी संघर्ष करता है।
    • उद्देश्य पूंजीवाद को समाप्त कर समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना होता है।

मार्क्सवादी दृष्टि में, वर्ग चेतना स्वतः विकसित नहीं होती, बल्कि शिक्षा, संगठन और संघर्ष के माध्यम से विकसित की जाती है

एंटोनियो ग्राम्शी ने वर्ग संघर्ष को किस रूप में विस्तारित किया?

एंटोनियो ग्राम्शी ने वर्ग संघर्ष को संस्कृति, विचारधारा और वर्चस्व (Hegemony) के संदर्भ में विस्तारित किया। उन्होंने पारंपरिक मार्क्सवादी दृष्टिकोण से आगे बढ़कर बताया कि शासक वर्ग केवल आर्थिक और दमनकारी शक्ति के माध्यम से शासन नहीं करता, बल्कि वैचारिक वर्चस्व (Ideological Hegemony) के माध्यम से जनता की सहमति भी प्राप्त करता है।

ग्राम्शी के वर्ग संघर्ष की प्रमुख अवधारणाएँ:

  1. वैचारिक वर्चस्व (Hegemony) – पूंजीपति वर्ग शिक्षा, मीडिया, धर्म और संस्कृति के माध्यम से विचारधारा को नियंत्रित करता है, जिससे शोषित वर्ग शोषण को प्राकृतिक मान लेता है।
  2. युद्ध की दो रणनीतियाँ:
    • युद्धाभ्यास (War of Manoeuvre) – सीधा क्रांतिकारी संघर्ष, जैसे रूस की अक्टूबर क्रांति।
    • स्थितीय युद्ध (War of Position) – सांस्कृतिक संस्थाओं में वर्चस्व स्थापित करके धीरे-धीरे परिवर्तन लाना।
  3. जैविक बुद्धिजीवी (Organic Intellectuals) – वे बुद्धिजीवी जो श्रमिक वर्ग से आते हैं और उनके हितों को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं।

ग्राम्शी के अनुसार, क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए केवल आर्थिक संघर्ष पर्याप्त नहीं है; सांस्कृतिक और वैचारिक संघर्ष भी आवश्यक है।

समकालीन समाज में वर्ग संघर्ष की प्रासंगिकता

मार्क्सवादी वर्ग संघर्ष आज भी प्रासंगिक है, लेकिन इसका स्वरूप बदला है। आधुनिक पूंजीवाद में आर्थिक असमानता, श्रम अधिकारों का हनन, और नवउदारवाद के प्रभाव के कारण नए रूपों में वर्ग संघर्ष जारी है।

प्रमुख संदर्भ:

  1. आर्थिक असमानता और पूंजीवाद का वर्चस्व

    • धनी और गरीब के बीच आय और संपत्ति की खाई लगातार बढ़ रही है (जैसे, अरबपतियों की संपत्ति बनाम निम्न वर्ग की समस्याएँ)।
    • श्रमिकों का वेतन ठहराव और श्रम शोषण बना हुआ है।
  2. गिग इकॉनमी और श्रम शोषण

    • अस्थायी और अनुबंध आधारित नौकरियों (Gig Economy) में श्रमिक अधिकार कमजोर हुए हैं।
    • अमेज़ॅन, उबर जैसी कंपनियों में श्रमिकों के लिए न्यूनतम सुरक्षा।
  3. कॉरपोरेट वर्चस्व और राजनीतिक प्रभाव

    • बड़े कॉरपोरेट घराने नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे सामान्य नागरिकों की लोकतांत्रिक भागीदारी सीमित हो रही है।
    • चुनावी राजनीति में पूंजीवादी हस्तक्षेप।
  4. नवउदारवाद और कल्याणकारी राज्य का क्षरण

    • सार्वजनिक सेवाओं (शिक्षा, स्वास्थ्य) के निजीकरण से निम्न वर्ग प्रभावित हो रहा है।
    • कल्याणकारी योजनाओं में कटौती, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ रही है।
  5. डिजिटल पूंजीवाद और डेटा नियंत्रण

    • बड़ी टेक कंपनियाँ (Google, Facebook) श्रमिकों और उपभोक्ताओं के डेटा का शोषण कर रही हैं।
    • डिजिटल श्रमिकों का शोषण और उनकी गोपनीयता का उल्लंघन।

समाधान और संघर्ष के नए रूप:

  • ट्रेड यूनियनों और श्रमिक आंदोलनों का पुनरुत्थान।
  • सामाजिक आंदोलनों (Occupy Wall Street, किसान आंदोलन) का प्रभाव।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संगठित विरोध (Hashtag Activism)।

समकालीन समाज में वर्ग संघर्ष का स्वरूप बदल गया है, लेकिन आर्थिक असमानता, श्रम शोषण और कॉरपोरेट वर्चस्व के कारण यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

नवउदारवाद और वैश्वीकरण के प्रभाव से वर्ग संघर्ष

नवउदारवाद (Neoliberalism) और वैश्वीकरण (Globalization) ने पूंजीपति वर्ग (Bourgeoisie) को मजबूत किया और श्रमिक वर्ग (Proletariat) को और अधिक शोषित किया। हालाँकि, वर्ग संघर्ष का स्वरूप बदला है, लेकिन इसका अस्तित्व आज भी बना हुआ है।

1. नवउदारवाद और वर्ग संघर्ष

नवउदारवाद 1980 के दशक में उभरा और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था, निजीकरण, और कल्याणकारी राज्य की कटौती को बढ़ावा दिया। इसका प्रभाव:

  • पूंजीपति वर्ग को अधिक शक्ति – निगमों को कर छूट, श्रम बाजार का लचीलीकरण, और श्रमिकों को कम सुरक्षा।
  • श्रमिक वर्ग पर हमला – स्थायी नौकरियों की कमी, न्यूनतम मजदूरी में गिरावट, ट्रेड यूनियनों की शक्ति क्षीण।
  • आर्थिक असमानता में वृद्धि – धनी और गरीब के बीच खाई चौड़ी हुई (उदाहरण: अमीर देशों में अमीर और गरीब के बीच आय अंतर बढ़ना)।
  • सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण – शिक्षा, स्वास्थ्य, और परिवहन सेवाओं का निजीकरण, जिससे निम्न वर्ग की कठिनाइयाँ बढ़ीं।

2. वैश्वीकरण और वर्ग संघर्ष

वैश्वीकरण ने उत्पादन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैला दिया, जिससे नए प्रकार के संघर्ष उभरे:

  • आउटसोर्सिंग और सस्ते श्रमिक – कंपनियाँ श्रमिकों का सस्ता श्रम पाने के लिए विकासशील देशों में उत्पादन केंद्र स्थापित करने लगीं (जैसे, भारत, बांग्लादेश, वियतनाम में कपड़ा उद्योग)।
  • गिग इकॉनमी और अस्थायी श्रम – प्लेटफ़ॉर्म आधारित नौकरियों (Uber, Swiggy) में श्रमिक अधिकार सीमित।
  • कॉर्पोरेट वर्चस्व – बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (Google, Amazon) वैश्विक राजनीति और नीति-निर्माण को प्रभावित करने लगीं।

3. समकालीन वर्ग संघर्ष के नए रूप

  • "Occupy Wall Street" आंदोलन – 1% बनाम 99% की बहस।
  • किसान और श्रमिक आंदोलन – भारत में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन (2020-21)।
  • डिजिटल श्रमिकों का शोषण – डेटा पूंजीवाद में बड़ी कंपनियाँ उपयोगकर्ताओं की जानकारी का शोषण कर रही हैं।

नवउदारवाद और वैश्वीकरण ने वर्ग संघर्ष को वैश्विक स्तर पर फैला दिया है। संघर्ष अब केवल कारखानों में नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, गिग इकॉनमी, और डेटा पूंजीवाद के रूप में भी सामने आ रहा है।

क्या वर्ग संघर्ष का अंत संभव है?

मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, वर्ग संघर्ष का अंत तभी संभव है जब एक वर्गविहीन समाज (Classless Society) की स्थापना हो। हालाँकि, इस लक्ष्य तक पहुँचने के रास्ते को लेकर विभिन्न विचारधाराओं में मतभेद हैं।

1. मार्क्सवादी समाधान: साम्यवाद (Communism)

  • वर्ग संघर्ष ऐतिहासिक विकास का इंजन है।
  • जब सर्वहारा वर्ग (Proletariat) पूंजीपति वर्ग (Bourgeoisie) को पराजित कर सर्वहारा अधिनायकत्व (Dictatorship of the Proletariat) स्थापित करेगा, तब धीरे-धीरे राज्य और वर्गों का क्षय होगा।
  • अंतिम चरण में साम्यवाद की स्थापना होगी, जहाँ उत्पादन के साधनों पर कोई विशेष वर्ग का स्वामित्व नहीं रहेगा।

2. समाजवादी समाधान: कल्याणकारी राज्य (Welfare State)

  • समाजवाद (Socialism) वर्ग संघर्ष को समाप्त नहीं करता, लेकिन इसे नियंत्रित करने का प्रयास करता है।
  • न्यायसंगत संपत्ति वितरण, श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा, और सार्वभौमिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ असमानता को कम करती हैं।
  • स्कैंडिनेवियाई मॉडल (स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क) में नवउदारवादी पूंजीवाद को कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोड़ा गया है, जिससे वर्ग संघर्ष को न्यूनतम किया जा सकता है।

3. नवउदारवादी समाधान: पूंजीवाद के भीतर सुधार

  • पूंजीवादी व्यवस्था में भी ट्रेड यूनियन, सामाजिक सुरक्षा, और CSR (Corporate Social Responsibility) जैसी नीतियों के माध्यम से वर्ग संघर्ष को कम किया जा सकता है।
  • हालाँकि, यह अस्थायी समाधान है, क्योंकि पूंजीवाद अंततः असमानता को पुन: जन्म देता है।

4. तकनीकी समाधान: स्वचालन और UBI (Universal Basic Income)

  • स्वचालन (Automation) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से उत्पादन श्रमिकों पर निर्भर नहीं रहेगा, जिससे श्रम शोषण कम हो सकता है।
  • सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) के माध्यम से सभी को न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।

निष्कर्ष:

वर्ग संघर्ष का पूर्ण अंत साम्यवाद की स्थापना से ही संभव है, लेकिन इतिहास गवाह है कि राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक जटिलताओं के कारण यह लक्ष्य अभी दूर है। हालाँकि, समाजवाद, कल्याणकारी नीतियाँ, और तकनीकी प्रगति वर्ग संघर्ष को नियंत्रित कर सकती हैं, लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है।

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