कार्ल मार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) क्या है?
कार्ल मार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) क्या है? इस वीडियो में हम द्वंदात्मक पद्धति का इतिहास, हीगल और मार्क्स की द्वंदात्मकता का अंतर, ऐतिहासिक भौतिकवाद, समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे। यह वीडियो UGC NET, UPSC PSIR, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद उपयोगी है।" दोस्तों द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत मार्क्सवाद का दार्शनिक आधार प्रस्तुत करता है। यह सिद्धांत भौतिकवाद की मान्यताओं को द्वंदात्मक पद्धति के साथ मिलाकर सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या देने का प्रयत्न करता है।
दोस्तों कार्ल मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद को समझने के लिए सबसे पहले हम लोग यह समझ लेते हैं कि भौतिकवाद और अध्यात्मवाद में क्या होता है? भौतिकवाद वह दार्शनिक दृष्टिकोण है, जो यह मानता है कि संसार की वास्तविकता केवल भौतिक (Material) या भौतिक तत्वों पर आधारित होती है। यह विचारधारा यह स्वीकार नहीं करती कि कोई आध्यात्मिक या अदृश्य शक्ति दुनिया को नियंत्रित करती है। जबकि अध्यात्मवाद वह दर्शन है, जो यह मानता है कि भौतिक दुनिया से परे भी एक आत्मिक या दैवीय शक्ति मौजूद है, जो जीवन और चेतना का मूल स्रोत है।
हेगेल के चिंतन में अध्यात्मवाद या आदर्शवाद को अपनाया गया है जबकि कार्ल मार्क्स ने भौतिकवाद में अपना विश्वास व्यक्त किया है। वस्तुत: मार्क्स ने हीगल की द्वंद्वात्मक पद्धति अपनाते हुए उसे अपने भौतिकवाद के साथ जोड़कर सामाजिक परिवर्तन की नई व्याख्या देने का प्रयत्न किया है।
द्वंद्वात्मक पद्धति के प्रयोग के आरंभिक संकेत प्राचीन यूनान में मिलते हैं। द्वंदात्मक विद्या का मूल अर्थ था - बातचीत, वार्तालाप, तर्क-वितर्क या वाद-विवाद की कला जिसका सर्वोत्तम प्रयोग सुकरात के संवादों में देखने को मिलता है। सुकरात का ध्येय सत्य के ज्ञान की तलाश करना था। अपने शिष्यों के साथ वार्तालाप करते समय वह तरह-तरह के प्रश्न उठाते और उसके उत्तर मांगते थे। इस तरह द्वंद्वात्मक पद्धति का ध्येय था परस्पर विरोधी विचारों और तर्कों का टकराव, ताकि जो तर्क एक दूसरे को काट दें उन्हें अस्वीकार कर दिया जाए और जो तर्क एक दूसरे के साथ जुड़ जाए उन्हें स्वीकार कर लिया जाए। हेगेल ने द्वंद्वात्मक पद्धति का प्रयोग यह संकेत देने के लिए किया की चिंतन प्रक्रिया में उपयुक्त निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए किस तार्किक प्रतिमान का प्रयोग करना चाहिए। हेगेल के अनुसार चिंतन की प्रक्रिया में सबसे पहले दो परस्पर विरोधी विचार सामने आते हैं, इनके टकराव से एक नया विचार उत्पन्न होता है। हीगल के अनुसार चिंतन की प्रक्रिया क्रमशः तीन चरणों में आगे बढ़ती है यह है - वाद, प्रतिवाद और संवाद। इसका तात्पर्य यह है की चेतना के विकास की प्रक्रिया में जो विचार सत्य से पिछड़ा हुआ है उसे अपने विरोधी विचार की चुनौती का सामना अवश्य करना पड़ता है और यह टकराव तब तक जारी रहता है जब तक की चेतना की यात्रा अपने लक्ष्य तक अर्थात परम सत्य तक नहीं पहुंच जाती।
मार्क्स ने हेगेल की द्वंद्वात्मक पद्धति को भौतिकवाद के साथ मिला कर यह मान्यता रखी कि स्वयं भौतिक तत्त्व या जड़-तत्त्व के भीतर विकास की क्षमता पाई जाती है। यही कारण है कि जड़-तत्त्व द्वंद्वात्मक पद्धति के अनुसार नए-नए रूपों में ढलता चला जाता है। भिन्न-भिन सामाजिक संस्थाएं जड़-तत्त्व के बदलते हुए रूप को व्यक्त करती हैं। हेगेल के द्वंद्वात्मक चेतनवाद का खंडन करत हुए मार्क्स ने यह तर्क दिया है कि जड़-तत्त्व की उत्पत्ति चेतन तत्त्व से नहीं होती, बल्कि चेतना स्वयं जड़-तत्त्व के विकास की सर्वोच्च परिणति है। मार्क्स ने लिखा है कि मनुष्यों का सामाजिक अस्तित्व चेतना पर आश्रित नहीं है बल्कि उनकी चेतना स्वयं उनके सामाजिक अस्तित्व पर आश्रित है। हेगेल के अनुसार सामाजिक विकास का लक्ष्य 'राष्ट्र-राज्य' (Nation-State) की स्थापना है, परंतु मार्क्स के अनुसार इसका लक्ष्य 'वर्गहीन और राज्यहीन समाज' (Classless and Stateless Society) की स्थापना है।
हेगेल और मार्क्स दोनों यह स्वीकार करते हैं कि जब तक सामाजिक विकास अपने चरम लक्ष्य तक नहीं पहुँच जाता, तब तक प्रत्येक सामाजिक अवस्था अस्थिर होती है। हेगेल के विचार से, यह इसलिए अस्थिर होती है क्योंकि वह चेतन-तत्त्व की प्रेरणा की अधूरी अभिव्यक्ति है; मार्क्स के विचार से वह इसलिए अस्थिर होती है क्योंकि जड़-तत्त्व के विकास के कारण उत्पादन की शक्तियां (Forces of Production) नए-नए रूप धारण करती चलती हैं। अतः जब तक तर्कसंगत उत्पादन प्रणाली (Rational Mode of Production) अस्तित्व में नहीं आ जाती, तब तक सामाजिक परिवर्तन अनिवार्य है। अतः इतिहास की प्रत्येक अवस्था में अपने विनाश के बीज निहित होते हैं।
हेगेल और मार्क्स : तुलनात्मक अध्ययन
(Comparative Study of Hegel and Marx)
विवेच्य विषय (The Issue) | हेगेल का विचार (Hegel’s View) | मार्क्स का विचार (Marx’s View) |
---|---|---|
दार्शनिक आधार (Philosophical Basis) | चेतनवाद (आदर्शवाद) (Idealism) | जड़वाद (भौतिकवाद) (Materialism) |
विकास की प्रकृति (Nature of Development) | द्वंदात्मक (Dialectical) | द्वंदात्मक (Dialectical) |
प्रगति का माध्यम (Medium of Progress) | राष्ट्रों का संघर्ष (War among Nations) | वर्गों का संघर्ष (Class Conflict) |
विकास का चरम लक्ष्य (Ultimate End of Development) | राष्ट्र-राज्य का वर्चस्व (Supremacy of the Nation-State) | वर्गहीन एवं राज्यहीन समाज (Classless and Stateless Society) |
हीगेल के अनुसार, "फ्रांसीसी क्रांति विचारों के द्वंद्व से हुई," जबकि मार्क्स के अनुसार, "फ्रांसीसी क्रांति आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों की उपज थी।"
आलोचना और समकालीन प्रासंगिकता:
आइए अब इसकी आलोचनाओं पर नजर डालते हैं।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सीमित – यह दार्शनिक सिद्धांत पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं माना जाता।
- सांस्कृतिक और मानवीय पहलुओं की अनदेखी – केवल आर्थिक पहलू पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
- अवधारणात्मक कठोरता – यह मानता है कि पूंजीवाद का अंत निश्चित रूप से समाजवाद में होगा, जो ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो अभी तक पूर्णतः सत्य साबित नहीं हुआ।
समकालीन प्रासंगिकता:
- समाज में आर्थिक असमानता और वर्ग संघर्ष आज भी मौजूद हैं।
- पूंजीवाद की आलोचना और समाजवादी विचारधारा कई देशों में आज भी प्रभावी है।
"तो दोस्तों, आज हमने जाना कि कार्ल मार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद क्या है, इसका ऐतिहासिक विकास कैसे हुआ, और यह समाज तथा राजनीति को कैसे प्रभावित करता है।" "अगर आपको यह वीडियो पसंद आया हो तो इसे लाइक करें, शेयर करें, और हमारे इस चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें!
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